दुनिया के सारे अल्पसंख्यको के लिए एक उदहारण है अमेरिका में यहूदियो का इतिहास और उनका रहना सहना, कि किस तरह मुश्किल या विरोध से भरे राजनीतिक वातावरण में शांति से रहा जा सकता है।

अमेरिका की बहुसंख्यक संस्कृति में खुद को ढाल कर, यहां के यहूदियो ने वाकई एक उदहारण दिया है कि समाज में  अल्पसंख्यक होके भी सम्मानजनक जिंदगी बिताई जा सकती है।  उन्होंने अमेरिका की संस्कृति, वहां के मूल्यों, पौराणिक कथाओं को अपना कर शांति स्थापना की है ।अमेरिका के यहूदी वहां के राष्ट्रीय संगठन, समाज संगठनो में हिस्सा लेते हैं लेकिन फिर भी धर्म, आस्था एक खुदा को मानने और उसकी पूजा करने के तरीके में खुद की अलग पहचान बनाये हुए है।
अपनी पवित्र किताब के अनुसार ही ये लोग अपनी आस्था को बनाये  हुए है।

यहूदी बौद्धिक नेताओं ने यू.एस. के संविधान के विचारों की व्याख्या की और दिखाया कि “जीवन, स्वतंत्रता और खुशी की खोज” की सभी अमेरिकियों के दैनिक जीवन में होने का क्या मतलब है , न कि केवल यहूदियों के जीवन में। जो सबके लिए अच्छा है वही यहूदियों के लिए अच्छा है इस परिकल्पना से , उत्पीड़ित अल्पसंख्यक हर जगह मुश्किल राजनीतिक वातावरण में शांति से पनप सकते हैं।

बहुसंख्यक द्वारा यहूदियों की  स्वीकृति की महत्वपूर्ण विशेषता ये भी है उन्होंने बहुसंख्यक संस्कृति को अपनाया है लेकिन फिर भी खुद को समाज से थोड़ा अलग रखा है। इसका अर्थ है प्रमुख संस्कृति को नपा तुला अपनाना। इस अंतर का कारण उनके धर्म की अनिवार्य विशेषता है । जब वे घर पर होते हैं तो धर्म का पालन करते हैं, और जब बाहर होते हैं, तो वे धर्मनिरपेक्ष होते हैं और पूरी तरह से घुलमिल जाते हैं।

वास्तविक जीवन में, भारतीय मुसलमानों के लिए इस घुलमिल जाने का क्या अर्थ होगा ?

इसका मतलब होगा, सभी धारियों के मुसलमान, चाहे देवबंदी हो बरेलवी या एहल सुन्नती वा जमाती , उनकी मान्यताओं के बावजूद, सड़कों पर, कार्यालय में, शैक्षणिक संस्थान ,और खेल के मैदान में हर किसी की तरह दिखें।
मुसलमानों के बीच परंपरा के अनुयायी अपनी दाढ़ी , हिजाब , नकाब (स्पष्ट रूप से एक खाड़ी आयात)और शेरवानी से  भारत में हममें से बाकी लोगों को खतरे में डालते हैं। इन सबके कारण वे मुख्यधारा से अलग खड़े हो जाते हैं।

इनमें से कोई भी मुस्लिम संप्रदाय जो चाहे उस पर विश्वास करने के लिए स्वतंत्र है, और यह प्रमुख भारतीय लोकाचार का हिस्सा भी है , जब तक वे विश्वास के मामले में साथी नागरिकों के खिलाफ हिंसा का प्रचार नहीं करते हैं। अगर कोई मुल्ला किसी को सार्वजनिक रूप से काफिर बुलाएगा तो यह एक आपराधिक गतिविधि होगी ।

भारतीय मुसलमानों को भारतीय लोकाचार के करीब आने की जरूरत है, ताकि वर्तमान दूरी को कम किया जा सके ।
भारतीय मुसलमानों को इब्न-ए-तैमिया, इब्न-ए-वहाब और इब्न-ए-हज़्म को अस्वीकार करना चाहिए। किसी भी प्रकार की विशिष्टता, शुद्धतावाद, भारतीय लोकाचार के विरुद्ध है।
तसव्वुफ़ को , निजामुद्दीन, मोइनुद्दीन चिश्ती, गेसूदराज जुनैद बगदादी के विचार और अभ्यास को गले लगाओ।

शिया समुदाय ने जिस तरह सत्ता में बीजेपी के साथ भाग  लिया है, ये भारतीय मुसलमानों के लिए एक चिंतन का विषय है। इस समय एक समझौतापूर्ण रहन सहन की जरूरत है।

संक्षेप में, भारत के मुसलमानो को हिंदू बहुमत के साथ खुद को रखना चाहिए। भारत एक ऐसी महान सभ्यता रही है जिसमें  सारे नैतिक नियम वेदों से विरासत में आए है और अब तक शायद मूल या विकृत रूप में, स्मृति और श्रुति की भारतीय विद्वानों की पद्धति के अनुसार मौजूद हैं 

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